लैटिन एक भारोपीय भाषा है जो इटली में जन्मी और रोमन साम्राज्यवाद द्वारा अधिकांश यूरोप और उत्तरी अफ्रीका के भागों में फैली। रोमन साम्राज्य के पतन के बाद लातिनी भाषा मृत हो गयी किंतु वास्तव में यह अपने ही सरल संस्करण में परिवर्तित हो गयी जिसे सामान्य लैटिन (vulgar Latin) कहा गया। उसके बाद यह स्पेनिश, फ्रेंच, इतालवी, पुर्तगाली और रोमानियन भाषा में बदल गयी। इस प्रकार शास्त्रीय लैटिन सामान्य लोकव्यवहार में प्रयोग से बाहर हो गयी।
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संस्कृत और लैटिन की नियति प्राय: एक सी लगती है। लातिनी भाषा भी विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है, कई दूसरी भाषाओं की जननी है और दुर्भाग्यवश अब एक मृत भाषा मानी जाती है। यह पढ़ाई तो अब भी जाती है किंतु जनसामान्य के वाग्व्यवहार में अब प्रयुक्त नहीं होती। हांलांकि कैथोलिक धर्म में इसकी मुख्य भूमिका है और यह वेटिकन सिटी की आधिकारिक भाषा है। यह दर्शन विशेष का मूल है। विज्ञान के क्षेत्र में विशेषकर जन्तुओं, रसायनों और शारीरिक अवयवों के नामकरण में यह भाषा प्रयुक्त होती है।
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यह लेख लैटिन भाषा को नहीं अपितु उस महान भाषाविद् फादर रेजीनाल्ड फोस्टर को समर्पित है जिसने अपनी सांसें लैटिन के नाम कर दी। कोरोना महामारी के विश्वव्यापी प्रकोप ने जिन प्रतिभाओं को हमसे छीन लिया उनमें फादर रेजिनाल्ड फॉस्टर भी हैं। फादर रेजीनाल्ड न केवल लैटिन में बोलते थे बल्कि लैटिन में सपने देखते थे, कोसते थे, पैसों का लेन-देन करते थे और लैटिन में ट्वीट भी करते थे। दिलचस्प बात है कि लातिनी भाषा का यह महान विद्वान जितना अपने पांडित्य के लिए जाना जाता था उतना ही अपने विचित्र व्यक्तित्व के लिए भी।
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फोस्टर रोम में बहुत सादे ढंग से रहते थे। एक पतले कंबल को ओढ़कर जमीन पर सोते, पुस्तकों को छोड़कर उपहार में मिली सभी वस्तुओं को लोगों में बांट देते। अपने धार्मिक परिधान उन्हें गरीब लोगों के पहनावे से बेमेल लगते थे इसलिए वे उसके बजाय सियर्स की पैंट और कमीज़, पैरों में सादे काले जूते और ठंडे मौसम में एक नीले पोलियस्टर का वायुरोधी जैकेट पहनते थे। यह वेश उन्हे उपहास का पात्र भी बना देता था। वैटिकन के पहरेदार उन्हें गैस स्टेशन अटैंडेन्ट बुलाते थे।
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उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी साधारण ही थी। नलसाजों के परिवार में जन्मे रेजिनाल्ड फोस्टर के लिए लैटिन पहली नजर का प्यार था जो उन्हे 13 साल की उम्र में हुआ। उन्हें लैटिन अद्भुत और किसी रहस्मय पहेली सी लगी और उन्होंने लैटिन को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।
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लातिनी भाषा सिखाने को लेकर फादर रेजिनाल्ड के लीक से हटकर किंतु दिलचस्प विचार हमारी संस्कृत पर भी वैसे ही लागू होते हैं या हो सकते हैं जैसे कि लैटिन पर। फोस्टर कहते थे लैटिन के आमतौर पर ऊबाऊ होने का कारण है कि इसे गलत ढंग से पढ़ाया जाता है। लैटिन के व्याकरण को विचित्र और रहस्यमय नियमों की एक वृहद और जटिल अमूर्त प्रणाली के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जो इसके एक वास्तविक और सजीव भाषा होने में प्रासंगिक नहीं है। लोगों को यह नहीं बताया जाता है कि लैटिन है क्या। उनसे बस सारे रूप, सन्धियों और विभक्तियों को याद करने को कह दिया जाता है।
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लैटिन के क्रियारूपों अमो (amo), अमास (amas), अमाट (amat), अमामुस (amamus), अमाटिस (amatis), अमान्ट (amant) को विद्यार्थी जादुई मंत्रों की एक श्रंखला की तरह वर्षों तक दोहराते रहते हैं। संज्ञाओं को एक मानक प्रारूप का अनुसरण करते हुए सदैव विभक्तियों सहित तालिकाबद्ध किया जाता है और उसी क्रम में सिखाया जाता है क्योंकि कम से कम शुरूआत में चीजों को आसानी से याद करने में गायन क्रम का यह तरीका कारगर होता है। बच्चों को वर्णमाला इसी तरह सिखाई जाती है। यहां तक कि विश्वविद्यालय स्तर पर भी कई शिक्षक विद्यार्थियों को संयुग्मन और विभक्ति तालिका को सही से याद करवाने के उपायों में विशेषज्ञ होते हैं।
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न्यूयॉर्क के सिटी विश्वविद्यालय में संचालित प्रतिष्ठित ग्रीष्म लैटिन कार्यक्रम में छात्रों को लयगीति पढ़ायी जाती है जैसे, “संयुग्मन संख्या 3 में, भविष्य का संकेत लंबे ई में है, संयुग्मन संख्या 4 में भविष्य का संकेत एक बार फिर दिखाई देता है।” ये स्मरण केलि मजेदार भी है जैसे कि लुईस कैरोल की निरर्थक कविता “जेबरवोकी” को गाना सीखना लेकिन इस जानकारी का समझ में आने से कोई लेना-देना नहीं है।
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फोस्टर के अनुसार में लैटिन को याद करने की खास आवश्यकता नहीं है। प्राचीन रोम में हर भिखमंगे और वेश्या को लैटिन आती थी और वे इसे याद करके नहीं सीखते थे। वे भाषा के आंतरिक तर्क को समझाते हैं जिससे व्याकरण स्वाभाविक रूप से प्रवाहित होती है। अंग्रेजी या किसी भी “रोमांस” भाषाओं के विपरीत लैटिन एक अंतःकुंचित भाषा है, जिसका अर्थ है कि एक शब्द के कार्य में परिवर्तन से उस शब्द के अंत में भी परिवर्तन होता है। वाक्य में एक संज्ञा (चाहे कर्ता हो या कर्म) और पूर्वसर्गों (को, द्वारा, से, आदि) की भूमिका शब्द के अंत में कूटबद्ध होती हैं। यदि आप समझते हैं कि वाक्य में एक शब्द का क्या कार्य है, तो आप काफी स्वाभाविक रूप से और अनुचित ढंग से याद किए बिना समझ पाएंगे कि इसमें कौनसी विभक्ति लगनी चाहिए।
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शब्द क्रम के बारे में अपनी बात को दृष्टान्त के साथ समझाने के लिए फोस्टर सिसरो का एक पत्र लेते हैं जो कि उसने 13 जून, 44 ई.पू. में अपने निकटतम मित्र एटिकस को लिखा था। नयी और प्रत्यक्ष शैली में लिखे गए सिसरो के ढेरों पत्र उसके दैनिक जीवन को पूरी विशेषता से चित्रित कर लेते हैं। उन्हें पढ़ना दो हज़ार साल पहले की बातचीत को अकस्मात् छुपकर सुनाने जैसा है।
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एक राजसी नाटकीय आवाज में फोस्टर कहते हैं, “रेजिनम ओडी (Reginam Odi)। रेजिना शब्द रानी के लिए है, ओडिसे (odisse) क्रिया है घृणा करने के लिए। यह मत कहिए कि रानी घृणा करती है। रानी किसी से घृणा नहीं करती।” फोस्टर पूरे जोर से चिल्लाते हैं, “यह कहता है, “मुझे रानी से घृणा है!” ध्यान दें कर्म पहले आता है, और क्रिया अंत में। रेजिना कर्म के रूप में प्रयुक्त होते समय रेजिनम बन जाता है।”
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फोस्टर लैटिन साहित्य, ख़ासतौर पर सिसरो के, विशेषज्ञ थे जिन्हे अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली। उन्होंने लैटिन को एक जीवित भाषा के रूप में पढ़ाया और कई लैटिनवादियों को प्रभावित किया।
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अपनी शिक्षण पद्धति को फोस्टर इस तरह बयां करते थे, “कोई व्याकरण की किताबें नहीं होंगी, कोई पाठ्यपुस्तकें नहीं होंगी। आपके साथ सिर्फ मैं हूंगा फिर चाहे मैं आपको पसंद होऊं या न होऊं। यही व्यवस्था है। हर छात्र को एक अच्छा लैटिन शब्दकोश मिलेगा।” छात्रों को सोमवार और शुक्रवार को कक्षा में आने और गृहकार्य करनेकी आवश्यकता होती थी जो फोस्टर सप्ताह में दो बार आयोजित करते थे।
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रेजिनाल्ड को इस बात के लिए भी जाना जाता था कि वे निरीश्वरवादियों को धार्मिक भक्ति के भावुक गद्यांश देते थे और पवित्र कैथोलिक को प्लौटस (Plautus) के फूहड़ गद्यांश। कईयों को यह शरारत भरा मनोरंजन भले ही लगता था किंतु कुछ लोगों को इसके पीछे उनके नैतिक विश्वावलोकन का दृष्टांतीकरण भी दिखाई दिया।
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वैटिकन के लिए अपनी सेवाएं देते हुए रेजीनाल्ड फोस्टर ने एक सविनय अवज्ञाकारी कार्य भी किया था। पोप जॉन पॉल द्वितीय द्वारा इतालवी या पोलिश में लिखे एक पाठ्यांश के आधिकारिक लातिनी संस्करण बनाने का काम सौंपे जाने पर उनका सामना एक ऐसे वाक्यांश से हुआ जहां लैटिन को एक “मृत” भाषा कहा गया था। उनसे उसका अनुवाद नहीं हो पाया इसलिए उन्होंने प्रस्ताव दिया कि वे इस विशेषण के स्थान पर “प्राचीन” लिखेंगे। उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया।
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फादर रेजिनाल्ड फोस्टर के गुजर जाने के बाद कोई यह कहे कि लैटिन भाषा मृत है तो एक बार के लिए इस पर विश्वास करके मैं उस महान भाषाविद् को श्रद्धांजलि अवश्य देना चाहूंगा।
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