जब भी किसी राजनेता द्वारा सार्वजनिक मंच से हिन्दी के राष्ट्रभाषा होने का दम भरा जाता है या उसके राष्ट्रभाषा बनाए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया जाता है तो कहीं और से हो न हो तमिळनाड से विरोध का स्वर अवश्य मुखर होता है। हाल ही में भी कुछ ऐसा ही हुआ है किंतु यह इस बार विरोध तमिळ कवि भारतीदासन् की एक कविता “तमिळुक्कुम अमुदेन्र पेर” की एक पंक्ति “इन्बत्तमिळ एंगल उरिमैचेम्मपयिरक्कु वेर से किया गया है।“ किसी कवि की किसी रचना का प्रयोग कोई किस प्रसंग में करता है यह कवि के वश की बात नहीं है। इसलिए हिन्दी के समर्थकों और विरोधियों के कोलाहल के मध्य इस कविता की उदात्त भावना को समझने के लिए अवकाश लेना ही चाहिए।
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अनुवाद:
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तमिळक्कुम अमुदेन्र पेर
अन्द तमिळ इन्बद तमिळ एंगल उयिरक्क नेर उयिरक्क नेर
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तमिळ मधु का पर्याय है
वह मधुर तमिळ हमारी आत्मा के समान है।
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तमिळक्क निलवेन्ड्र पेर
इन्बत्तमिळ एंगल समूगत्तिन विलैवक्क नीर
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तमिळ चन्द्रमा का पर्याय है
मधुर तमिळ हमारे समाज का परिवर्धन करने वाला जल है।
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तमिळक्क मनमेन्ड्र पेर
इन्बत्तमिळ एंगल वाड़वक्क निरमित्त ऊर
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तमिळ सुगंध का पर्याय है
मधुर तमिळ हमारे जीवन की आधारशिला है
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तमिळक्क मधुवेन्ड्र पेर
इन्बत्तमिळ एंगल उरिमैच्चेम पयिरक्क वेर
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तमिळ मधु का पर्याय है
मधुर तमिळ हमारे अधिकारों को संगठित करने वाला मूल है
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तमिळ एंगल इलमैक्क पाल
इन्बत्तमिळ नल्ला पुगड़मिक्क पुलवर्क्क वेल
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तमिळ हमारे युवाओं के लिए दूध है
तमिळ प्रसिद्ध कवियों पुलवरों का भाला है
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तमिळ एंगल उयरवुक्क वान
इन्बत्तमिळ एंगल असदिक्क चुडरदन्द तेन सुदरदन्द तेन
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तमिळ हमारे आरोहण को प्रोत्साहित करने वाला आकाश है
मधुर तमिळ हमारी क्लांत आत्माओं को पुन: ऊर्जा से भरने वाला मधु है।
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तमिळ एंगल अरिवुक्कुद तोल
इन्बत्तमिळ एंगल कवित्तैक्क वयिरत्तिन वाल
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तमिळ हमारे ज्ञान को अवलंबन देने वाला स्कन्ध (कन्धा) है
मधुर तमिळ हमारी कविता की रत्नजटित तलवार है।
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तमिळ एंगल पिरविक्कुद ताय
इन्बत्तमिळ एंगल वलमिक्क उलमुट्र ती
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तमिळ हमारी जन्मदायिनी माता है
मधुर तमिळ हमारी समृद्धि की राह दिखाने वाली अग्निशिखा है।
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इस गीत में तमिळ को मधुर कहा गया है और मधु का पर्याय माना गया है। इसे तमिळ शब्द की व्युत्पत्ति तम् + इळ प्रमाणित करती है।
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तमिळ के अतिरिक्त तमिळनाड के प्रतिवेशी राज्यों की भाषा की व्युत्पत्तियों बारे में जानना भी रुचिकर है।
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जब पांडियन शासकों ने केरल के बड़े भूभाग पर अपना आधिपत्य खो दिया तब तमिळ से भिन्न एक भाषा मलयालम अस्तित्व में आई। तमिळ में मलय का अर्थ पर्वतीय और आलम का अर्थ शासित होता है। मलयालम वस्तुत: तमिल और संस्कृत के मेल से बनी भाषा है।
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तेलुगु के विषय में विद्वान मानते हैं कि इसकी उत्पत्ति श्रीशैलम्, द्राक्षारामम् और कालेश्वरम् इन तीन शिवमंदिरों वाली भूमि त्रिलिंग देश में हुई है। तेलुगु भाषाविद् गन्टी जोगी सोमयाजी की परिकल्पना है कि तेलुगु की व्युत्पत्ति तेन+ उंगु से हुई है। आद्य द्रविड़ में तेन का अर्थ है दक्षिण। अतएव तेनुंगु का अर्थ हुआ दक्षिणी।
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इसी तरह कन्नड़ा की व्युत्पत्ति कारु+नाड से मानी जाती है जिसका अर्थ है कपास के लिए उपजाऊ काली मिट्टी वाली भूमि। संस्कृत, पालि, प्राकृत और तमिळ के सदियों के मेलजोल से कन्नड़ा भाषा का स्वरूप बना।
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कन्नड़ा की भगिनी भाषा तूलू की व्युत्पत्ति द्रविड़ भाषा के शब्द तुलि से हुई है जिसका अर्थ होता है जल की बूंद। यह व्युत्पत्ति इस भाषा के तटीय क्षेत्रों में प्रचलित होने से न्यायसंगत प्रतीत होती है।
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