पोन्‍न‍िय‍िन सेल्‍वन: कल्‍क‍ि की कृत‍ि और स‍िनेमा का ऐश्‍वर्य

Ajay Singh Rawat/ October 7, 2021

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मणिरत्‍नम् द्वारा सहन‍िर्म‍ित और न‍िर्देश‍ित इस चलच‍ित्र ने तम‍िळ लेखक कल्‍क‍ि की कालजयी कृत‍ि पोन्‍न‍िय‍िन सेल्‍वन को फ‍िर से चर्चा में ला द‍िया है। पोन्‍न‍िय‍िन सेल्‍वन का अर्थ है पोन्‍नी नदी का पुत्र। इस कथा का जन्‍म उस कथाकार के हृदय में हुआ जो पोन्‍नी अथवा कावेरी नदी के क‍िनारे पला बढ़ा। कावेरी नदी इस उपन्‍यास का मौन और मुख्‍य चर‍ित्र है। उपन्‍यास का आरंभ नदी क‍िनारे उत्‍सव के रंगारंग आयोजन से होता है। द‍िन है आडी पेरक्‍क त‍िरूनाल अर्थात् आडी माह की त‍िथ‍ि 18 जब ग्रामीण लोग कावेरी को धन्‍यवाद देने के ल‍िए नदी क‍िनारे जाते हैं। स‍िलप्‍पद‍िकारम् के कनल वरी का एक पद भी कव‍ि ने उद्धृत क‍िया है जो एक नववधू के रूप में कावेरी के सौंदर्य का वर्णन करता है।
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ह‍िन्‍दीभाषी दर्शकों के ल‍िए पोन्‍न‍िय‍िन सेल्‍वन के प्रत‍ि उत्‍सुकता व‍िश्‍वसुंदरी अभ‍िनेत्री ऐश्‍वर्य राय की भूम‍िका को लेकर अध‍िक है। जोधा अकबर के बाद ही ऐश्‍वर्य राय क‍िसी रानी के रूप में द‍िखाई देगी इसल‍िए सभी स्‍तब्ध कर देने वाले उनके सौंदर्य को फ‍िर से न‍िहारने की प्रतीक्षा में हैं।
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पोन्‍न‍िय‍िन सेल्‍वन में ऐश्‍वर्य राय दो चर‍ित्रों को साकार करने जा रही हैं मुख्‍य नाय‍िका नंद‍िनी और उसकी मूक मां महारानी मंदाक‍िनी देवी। नंद‍िनी को कल्‍क‍ि द्वारा रचे गए सर्वाध‍िक जट‍िल क‍िरदारों में से एक माना जाता है। उसको इस उपन्‍यास के सभी पात्रों द्वारा अन्‍योक्‍त‍ि द्वारा व‍िश्‍वासघाती, दुष्‍ट, व‍िषैल‍ी, घातक और खतरनाक कहा कहा गया है जो क‍ि सर्वथा असत्‍य भी नहीं है। नंद‍िनी इस उपन्‍यास का सबसे घातक क‍िरदार है। वह न केवल सुंदरी है बल्‍क‍ि बुद्ध‍िमती भी है। एक अच्‍छी तरह तराशे गए रत्‍न की तरह उसके व्‍यक्‍त‍ित्‍व के कई पहलु हैं। एक वृद्ध राजा से व‍िवाह करने को व‍िवश एक तरूणी के रूप में नंद‍िनी पाठकों की सहानुभूत‍ि अर्ज‍ित करती है। क‍िंतु यह व‍िवाह उसके प्रत‍िशोध का साधन भी है।
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नंदि‍नी के चर‍ित्र की व‍िशेषता यह है क‍ि वह वृद्ध सम्राट से व‍िवाह करके भी दाम्‍पत्‍य संबंधों का न‍िर्वाह नहीं करती। वह अपने सौंदर्य और आकर्षण से कई परपुरुषों को लुभाती तो है क‍िंतु उनसे दैह‍िक संबंध स्‍थाप‍ित नहीं करती। इस तरह वह अपना पात‍िव्रत्‍य भी न‍िभाती है।
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पूरे उपन्‍यास में हमें नंद‍िनी के भांत‍ि-भांत‍ि के रूप देखने को म‍िलते हैं जैसे षडयंत्रकारी रणनीत‍िज्ञ नेत्री और एक अभागी स्‍त्री भी ज‍िसके जीवन को कई लोगों ने अपने ढंग से प्रभाव‍ित क‍िया है।
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पूरे उपन्‍यास में नन्‍द‍िनी क‍िसी अज्ञात व्‍यक्‍त‍ि को मेरे प्र‍िय कहकर संबोध‍ित करती है पर वह है कौन यह पाठक नहीं जान पाते।
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पोन्‍न्‍य‍िनसेल्‍वन की कथा वन्‍द‍ियदेवन नामक राजकुमार के ईर्दग‍िर्द घूमती है जो क‍ि एक सजीला, पराक्रमी और तेजस्‍वी युवक है। वह राजा बनने जा रहे युवराज आद‍ित्‍य कर‍िकलन का संदेश राजा और राजकुमारी को पहुंचाने के ल‍िए चोल साम्राज्‍य की ओर न‍िकल पड़ता है।
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यह कहानी चोल देश में वन्‍द‍ियदेवन की यात्रा और श्रीलंका में युवराज अरुलमोड़ीवर्मन की यात्रा के मध्‍य घट‍ित होती रहती है। इसमें अरूलमोड़ी की बहन कुंडवइ के प्रयासों का भी वर्णन है जो उसने अरूलमोड़ी को वापस लाने के ल‍िए क‍िए क्‍योंक‍ि उनके राज्‍य में सामन्‍त और जागीरदार व‍िद्रोह का षडयंत्र रच रहे थे।
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राज राजा चोलन् ज‍िन्‍हें अरुलमोड़ी वर्मन् नाम से भी जाना जाता है वह चोलवंश के महान राजाओं में से एक थे। उन्‍होंने 985 ईस्‍वी से लेकर 1014 ईस्‍वी तक शासन क‍िया। अपने राज्‍यकाल के दौरान उन्‍होंने श्रीलंका, मालाबार तट और मालद्वीप पर व‍िजय पायी और उन्‍हें अपने साम्राज्‍य में म‍िला ल‍िया। उन्‍होंने तंजाऊर में व‍िशाल वृहदीश्‍वर मंद‍िर का न‍िर्माण करवाया। राजराजा का शासनकाल अपने सुशासन और साह‍ित्‍य‍िक योगदान के ल‍िए जाना जाता है। इनके शासन में ही अप्‍पार सम्‍बन्‍दार और सुन्‍दरार की तम‍िळ कव‍िताएं त‍िरुमुरै में संग्रहीत की गयीं और उनका संरक्षण संभव हो पाया।
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पोन्‍न‍िय‍िन सेल्‍वन में अरुलमोड़ी वर्मन मात्र 19 वर्ष का राजकुमार है और कल्‍क‍ि ने बड़ी दक्षता के साथ उन प्रभावों को द‍िखाया है ज‍िन्‍होंने उसे सम्राट का व्‍यक्‍त‍ित्‍व प्रदान क‍िया।
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वन्‍द‍ियदेवन् (वंद्यदेवन्) कोई काल्‍पन‍िक पात्र नहीं है। वह वास्‍तव में एक बाना राजकुमार था ज‍िसने कुन्‍दवै से व‍िवाह क‍िया था। कल्‍क‍ि वन्‍द‍ियदेवन् को दूसरा नायक बनाना चाहते थे क‍िंतु उसका चर‍ि‍त्र राजराजा के चर‍ित्र पर भी छा जाता है।
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दक्ष‍िण भारत के इत‍िहासकार नीलकंठ शास्‍त्री से ऐति‍हास‍िक तथ्‍य संकल‍ित करके कल्‍क‍ि कृष्‍णमूर्त‍ि ने एक ऐसी अद्वि‍तीय कृत‍ि रची जो पाठकों की नब्‍ज़ पकड़ कर चलती है। चाहे वह नंद‍िनी की पहचान उजागर करना हो अथवा सम्‍बुवरैयार महल में स‍िहांसन पर कब्‍जा करने का षडयंत्र कल्‍क‍ि कहानी की गत‍ि को थमने नहीं देते। चोलवंश के प्रत‍ि लोगों का लगाव कल्‍क‍ि के इस अथक पर‍िश्रम और लगन की ही देन है।
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इससे पहले कि यह चलच‍ित्र व‍िमुक्‍त (र‍िलीज़) हो आप इस पुस्‍तक को पढ़ने का प्रयास करें। कल्‍कि‍ से बेहतर कथा कोई नहीं कह सकता। जब आप पुस्‍तक खोलते हैं और वन्‍द‍ियदेवन (वंद्यदेवन्) के साथ आडीपेरक्‍क उत्‍सव में वीरनारायणम् झील के क‍िनारे घोड़े पर टहलते हैं तब आपको समझ आता है क‍ि पोन्‍न‍िय‍िन सेल्‍वन एक कालजयी कृत‍ि है। तम‍िळ घरों में यह मात्र एक पुस्‍तक नहीं अप‍ितु एक भावना भी है।
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पांच सौ करोड़ की लागत से बने इस चलच‍ित्र में व‍िक्रम, जयम रव‍ि और कार्ती जैसे दक्ष‍िण भारतीय स‍िनेमा के लोकप्र‍िय अभ‍िनेता भी अपना अभ‍िनय कौशल द‍िखाएंगे। पोन्‍न‍िय‍िन सेल्‍वन जैसा व‍िशुद्ध तम‍िळ नाम गैर तम‍िळ दर्शकों की जुबान पर जल्‍दी से नहीं चढ़ पाएगा इसी आशंका से इसे PS-I के वैकल्‍प‍िक नाम से प्रचार‍ित क‍िया जा रहा है।

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