द्रव‍िड़ राजनीत‍ि के बापू: तन्‍दै पेर‍ियार

Ajay Singh Rawat/ November 20, 2022
पेर‍ियार

पेर‍ियार दक्ष‍िण भारतीय राजनीत‍ि का एक प्रखर व्‍यक्त‍ित्‍व हैं ज‍िन्‍होंने वहां के जनसाधारण में सामाज‍िक समानता और आत्‍मसम्‍मान का अलख जगाया। तम‍िळनाड की राजनीत‍ि का न‍िरालापन पेर‍ियार की ही देन हैं।
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जो ह‍िन्‍दू धर्म की व‍िशेषताओं में रूच‍ि रखते हैं उन्‍हें तम‍िळनाड अत्‍यंत धार्म‍िक प्रतीत होगा। ललाट पर व‍िभूत‍ि या कुमकुम लगाने वाले लोग, गली के कोनों से लेकर सरकारी कार्यालयों तक सर्वत्र द‍िखाई देने वाले देवता और मंद‍िर, रंग ब‍िरंगे भगवान और नैवेद्य से सजे वाहन आद‍ि इसी धारणा को पुष्‍ट करते हैं। फ‍िर एक मूर्त‍िभंजक, तर्कशील समाज सुधारक जो क‍ि दशकों पहले गुजर चुका है ऐसे राज्य में इतनी लोकप्रि‍यता कैसे पा सका। तम‍िळनाड में उनकी लोकप्रियता को शेष भारत में गांधी की लोकप्र‍ियता के समानांतर ही आंका जा सकता है। जैसे मोहनदास करमचन्‍द गांधी को बापू और महात्‍मा की ख्‍यात‍ि म‍िली वैसे ही ईरोड वेन्‍कटप्‍पा रामासामी अपने लोगों में तन्‍दै (प‍िता) और पेर‍ियार (आदरणीय बुज़ुर्ग) के रूप में लोकप्र‍िय हुए।
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1879 में जन्‍मे पेर‍ियार को तम‍िळों के आत्‍मसम्‍मान और पहचान को पुन: स्‍थाप‍ित करने वाले सुयमर्यातै इयक्‍कम् (आत्‍मसम्‍मान आंदोलन) के ल‍िए स्‍मरण क‍िया जाता है। उन्‍होंने द्रव‍िड़ों के देश द्रव‍िड़नाड की संकल्‍पना की और द्रव‍िड़ार कड़गम नामक राजनीत‍िक दल बनाया। पेर‍ियार ने अपनी राजनीत‍िक यात्रा अपने गृहनगर इरोड में कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में प्रारंभ की। कांग्रेस द्वारा प्रायोज‍ित राष्‍ट्रवादी नेता वी वी एस अय्यर के त‍िरुनेलवेली के न‍िकट चेरनमहादेवी स्‍थ‍ित गुरुकुल में ब्राह्मण और गैरब्राह्मण छात्रों की पृथक भोजन व्‍यवस्‍था पर उनका गांधीजी से व‍िवाद हुआ। अभ‍िभावकों के आग्रह पर अय्यर ने ब्राह्मण छात्रों को पृथक भोजन कराया ज‍िसका पेर‍ियार ने व‍िरोध क‍िया। गांधीजी ने भी अभ‍िभावकों के संकोच को स्‍वीकार कर ल‍िया। कांग्रेस को अपने दृष्‍ट‍िकोण से ढ़ालने में असमर्थ पेर‍ियार ने वह दल छोड़कर जस्‍ट‍िस पार्टी और सुयमर्यातै इयक्‍कम् से जुड़ गए ज‍िसमें सामाज‍िक जीवन में व‍िशेषकर नौकरशाही में ब्राह्मणों को वरीयता देने का व‍िरोध क‍िया गया। । जस्‍ट‍िस पार्टी ने मद्रास रेसीडेंसी में सत्‍तारूढ़ होने के पश्‍चात नौकरशाही में गैरब्राह्मणों के ल‍िए आरक्षण सुन‍िश्‍च‍ित क‍िया।
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1924 में वाइकोम सत्‍याग्रह के दौरान पेर‍ियार की ख्‍यात‍ि तम‍िळनाड के बाहर भी फैल गयी। इस जन आंदोलन में प्रस‍िद्ध वाइकोम मंद‍िर के आम रास्‍ते को न‍िम्‍न जात‍ि के लोगों के भी प्रयोग में लेने की मांग उठाई गयी थी। इस आंदोलन में पेर‍ियार ने सपत्‍नीक भाग ल‍िया और दो बार ग‍िरफ्तार भी हुए। वे बाद में वाइकोम वीरार अर्थात् वाइकोम वीर भी कहलाए।
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1920 और 1930 के दशक में पेरि‍यार ने सामाज‍िक और राजनीत‍िक सुधार को जोड़कर तम‍िळ क्षेत्र में कांग्रेस के परंपरागत स्‍वरूप और मुख्‍यधारा राष्‍ट्रीय आन्‍दोलन को चुनौत‍ी दी। उन्‍होंने तम‍िळ पहचान की पुर्नरचना की जो क‍ि मूलत: जात‍िव्‍यवस्‍था से प्रदूष‍ित नहीं थी और उसे कांग्रेस द्वारा तैयार की गयी भारतीय पहचान के व‍िरुद्ध खड़ा क‍िया। उनका तर्क था क‍ि तम‍िळ क्षेत्र में जात‍िव्‍यवस्‍था उत्‍तरभारतीय संस्‍कृतभाषी आर्य ब्राह्मणों द्वारा लायी गयी थी । 1930 में जब कांग्रेस मंत्रालय ने ह‍िन्‍दी थोपनी चाही तो उन्‍होंने इसे तम‍िळ पहचान और आत्‍मसम्‍मान पर प्रहार बताया।
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1940 में पेर‍ियार ने द्रव‍िड़ार कड़गम की स्‍थापना की ज‍िसने तम‍िळ, तेलुगु, कन्‍नड़ा और मलयालम भाष‍ियों के एक स्‍वतंत्र द्रव‍िड़नाड की संकल्‍पना की। द्रव‍िड़ राष्‍ट्रीय पहचान के उनके व‍िचार का आधार द्रव‍िड़ भाषा पर‍िवार था।
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एक औसत तम‍िळ के ल‍िए पेर‍ियार एक आदर्श है। वह सामाज‍िक समानता आत्‍मसम्‍मान और भाषायी अभ‍िमान को पोष‍ित करने वाली राजनीत‍ि का प्रत‍िन‍िध‍ि हैं। एक समाज सुधारक के तौर पर पेर‍ियार ने सामाज‍िक, सांस्‍कृत‍िक और लैंग‍िक असमानताओं पर ध्‍यान केन्‍द्र‍ित क‍िया।
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वे मह‍िलाओे की स्‍वतंत्रता और नौकरी में उनके समान अध‍िकार के पक्षधर थे। उनके द्वारा चलाए गए सुयमर्यातै इयक्‍कम् ने ब‍िना रीत‍ि र‍िवाजों वाले व‍िवाहों और मह‍िलाओं को सम्‍पत्त‍ि और तलाक के अध‍िकार को प्रोत्‍साह‍ित क‍िया। उन्‍होंने लोगों से अपने नाम में जात‍िसूचक उपनाम उपयोग में न लेने का आग्रह क‍िया। स्‍वयं उन्‍होंने 1927 में अपनी तम‍िळ पत्र‍िका कुद‍िअरस में अपने नाम में उपनाम नायकर का प्रयोग करना छोड़ द‍िया। उन्‍होंने अर्न्‍तजातीय भोजन का आयोजन क‍िया ज‍िसमें भोजन दल‍ित बनाते थे।
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पेर‍ियार की व‍िचारधारा द्रव‍िड़प्रधान से अध‍िक ब्राह्मणव‍िरोधी रही। उनका पृथकवाद ब्राह्मण सत्‍ता के सफाये का एक माध्‍यम था। उनके जात‍िव‍िरोध ने हर‍िजनों के उन्‍नयन से अध‍िक ब्राह्मणों के वर्चस्‍व को चुनौत‍ी दी। दक्ष‍िण भारतीय समाज को पुन: गढ़ने में उनकी प्रेरणा तम‍िळ ही नहीं अप‍ितु पाश्‍चात्‍य भौत‍िकवाद और मार्क्‍सवाद भी थे।
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द‍िसम्‍बर 13 1931 को एस रामानाथन और ईरोड रामू के साथ पेर‍ियार ने दस महीने की योरोप यात्रा के ल‍िए प्रस्‍थान क‍िया। इस यात्रा का उद्देश्‍य अपने सुयमर्यातै इयक्‍कम् प्रारंभ करने से पूर्व व‍िश्‍व के दूसरे प्रगत‍िशील आंदोलनों की प्रक्र‍िया को समझना था। अपनी वापसी पर उन्‍होंने ज‍िन देशों का भ्रमण क‍िया उनके राजनीत‍िक, सामाज‍िक और आर्थि‍क पर‍िदृश्‍यों प्रशासन और न्‍याय व्‍यवस्‍था के बारे अपने राजनीत‍िक पत्र कुद‍ि अरस में लेख ल‍िखे।
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AIADMK, DMK, DK, PMK, MDMK सह‍ित दूसरे कई द्रव‍िड़ राजनीत‍िक द‍ल जो आज अस्‍त‍ित्‍व में हैं उनके सैद्धांत‍िक अस्‍त‍ित्‍व का आधार वह ब्राह्मण व‍िरोधी और ह‍िन्‍दी व‍िरोधी राजनीत‍ि है ज‍िसका नेतृत्‍व बीसवीं सदी के आरंभ में पेर‍ियार ने क‍िया था।
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अपने धर्म, भाषा और संस्‍कृति‍ को लेकर तम‍िळ समाज ज‍ितना संवेदनशील है उसे देखते हुए पेर‍ियार के कई कृत्‍य उनके व्‍यक्‍त‍ित्‍व को व‍िवादास्‍पद बनाते हैं।
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1950 के मध्‍य में पेरीयार के नेतृत्‍व में बड़े आंदोलन हुए ज‍िनमें प‍िल्‍लैयार की मूर्त‍ियों को तोड़ा गया और भगवान राम के च‍ित्रों को जलाया गया। पेर‍ियार ने स‍िलप्‍पद‍िकारम की आलोचना भी यह कहकर क‍ि यह वेश्‍यावृत्‍त‍ि से आरंभ होती है और सतीत्‍व और अंधव‍िश्‍वास पर समाप्‍त होती है। वे कन्‍नगी को आत्‍मसम्‍मान वाली मह‍िला नहीं मानते थे क्‍योंक‍ि वह एक वेश्‍या के ल‍िए अपने पत‍ि द्वारा त्‍यागे जाने पर भी उससे प्रेम करती रहती है। हांलाक‍ि आज के द्रव‍िड़ राजनेता कन्‍नगी को तम‍िळ स्‍त्रीत्‍व का प्रतीक मानते हैं।
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अक्‍तूबर 11 1967 में व‍िडुतलै के संपादकीय लेख में पेर‍ियार ने तम‍िळ को काट्टम‍िरांडी मोड़ी अर्थात् बर्बरों की भाषा कहा था। इसी तरह त‍िरुकुरल को उन्‍होंने तंग तट्ट‍िल वैत्‍त मल अर्थात् स्‍वर्ण थाल में परोसा गया मल बताया। तम‍िळ शैव साह‍ित्‍य जैसे तेवरम त‍िरुवसगम और त‍िरुमन्‍द‍िरम जो क‍ि श‍िवस्‍तुति‍ में रचे गए त‍िरुमुरै का अंश है को उन्‍होंने कूड़ा कहा। तम‍िळ वेद माने जाने वाले द‍िव्‍यप्रबन्‍धम और प्रस‍िद्ध मुन‍ि सेक्‍क‍िलार द्वारा रच‍ित पेर‍ियपुराणम ज‍िसमें 63 नयनमारों के जीवन का वर्णन है को उन्‍होंने तम‍िळ समाज का अह‍ित करने वाला बताया। तम‍िळ के लोकप्र‍िय कव‍ि सुब्रहमण्‍यम भारती भी उनकी आलोचना से बच नहीं पाए।
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ऐसा नहीं है क‍ि पेर‍ियार के आदर्शों को अपनाकर तम‍िळनाड पर राज करने वाले राजनेता उनकी नास्‍त‍िकता से भी सहमत थे। मुतुवेल करूणान‍िध‍ि के पीले अंगवस्‍त्र का धार्म‍िक महत्‍व एक रहस्‍य बना रहा। इसी प्रकार द्रव‍िड़ीय आदर्शों की ध्‍वजवाह‍िका पुराट्ची तलैवी जयलल‍िता अपनी धर्मन‍िष्‍ठा को सार्वजन‍िक करती रही। अपने नाम की वर्तनी में अत‍िर‍िक्‍त “ए” जोड़कर जयलल‍िता ने अंकव‍िज्ञान में अपनी आस्‍था को भी उजागर क‍िया।
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पेर‍ियार का न‍िधन 1973 में 94 वर्ष की आयु में हुआ। उनकी मृत्‍यु के बाद उनकी राजनीत‍िक उत्‍तराध‍िकारी बनी मणि अम्‍मै जो क‍ि उनसे 38 वर्ष छोटी थी। इस बेमेल व‍िवाह का कारण अपनी राजनीत‍िक व‍िरासत को व‍िध‍िसम्‍मत ढंग से सौंपनाा था क‍िंंतु उनके आलोचकों के ल‍िए यह भी उनके जीवन से जुड़ा एक व‍िवाद है।

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