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हम भारतवासियों की रसनालोलुपता या स्वादविलासिता का सबसे अच्छा प्रमाण यह है कि यहां हर प्रदेश के दर्जनों अपने व्यंजन हैं। सामान्यतया दक्षिण भारतीय व्यंजनों का उल्लेख होने पर इडली दोसै का ख्याल सबसे पहले आता है और तमिळनाड के विषय में भी यही सच है। किंतु इडली दोसै के अतिरिक्त भी तमिळनाड के कई व्यंजन है जो वहां के लोगों को खूब भाते हैं और इनमें बिरयानी का नाम सबसे पहले आता है।
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बिरयानी एक अखिल भारतीय व्यंजन है अतएव जब बिरयानी की बात होती है तो कई भारतीय राज्यों में होड़ सी मच जाती है अपनी बिरयानी को सबसे खास बताने की। हैदराबाद की बिरयानी, अवध की बिरयानी, आदि, आदि किंतु सिर्फ लोगों की पसंद की बात की जाए तो बिरयानी सच में तमिळों की हृदयसम्राज्ञी है। कुछ समय पहले भोजन सुपुर्दगी सेवा के आकड़ों ने यह प्रमाणित कर दिया कि भारत में बिरयानी सर्वाधिक मंगाया जाने वाला व्यंजन है। मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि बिरियानी को शीर्ष पर पहुंचाने में निस्संदेह तमिळनाड का योगदान भी है। खुशी का कोई भी अवसर हो, बिरयानी खाने-खिलाने की बात तमिळों की जीभ की नोक पर विराजमान रहती है। बिरयानी की मौजूदगी विरुन्तोम्बल अर्थात् आतिथ्य की शान बढ़ा देती है।
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भारत में बिरयानी का आगमन इस्लामी संस्कृति के साथ हुआ और बिरयानी बनाने वालों ने अपने हिंदु मित्रों के लिए उसका शाकाहारी संस्करण तहरी बनाया। इस तथ्य के बावजूद बिरयानी को तमिळों का मौलिक व्यंजन सिद्ध करने की चेष्टाएं भी हुई है।
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पुरानानूरु विश्व में सबसे प्राचीन काव्यसंग्रह है जिसमें 167 कवियों की 400 कविताएं संकलित हैं। ये कविताएं आमयुग की दूसरी से पांचवी शताब्दी के मध्य रची गयी हैं। चोल राजा नलनकिल्ली द्वारा पांडियन के सात परतों वाले गढ़ पर विजय पाने के उपलक्ष्य मे कोवुर किड़ार द्वारा रचित पद में बिरयानी जैसे एक व्यंजन का उल्लेख हुआ है जिसे “ऊन सोर” कहा गया है। दूसरा उल्लेख चेर, चोल और पांडियन राजाओं के विश्वासघात से मारे गए वेल परि के लिए कपिलार द्वारा रचे पद में है। वेल परि कर्ण की भांति दानवीर था।
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तमिळ बिरयानी का एक लोकप्रिय प्रकार है अम्बूर बिरयानी जिसे सर्वप्रथम आरकोट के नवाबों ने प्रस्तुत किया था। इसे उनके राजसी रसोइयों ने वेल्लोर के अम्बूर और वनियाम्बाडी गाँवों में लोकप्रिय किया। अम्बूर बिरियानी में कोई गरम मसाला या धनिया प्रयुक्त नहीं होता। इसका स्वाद लाल मिर्च की चटनी से आता है। इसकी एक विशिष्ट सुंगध होती है। गरम मसालों का नरम इस्तेमाल और तरी के लिए दही का प्रयोग इसे पचने में आसान बना देता है। इसे सामान्यतया कदिरिकै पचड़ी या खट्टे बैंगन की तरी के साथ के साथ परोसा जाता है।
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तमिळ बिरयानी का दूसरा लोकप्रिय प्रकार है डिण्डिगल की तलपकट्टी बिरयानी। इसके श्रेयधारक नागासामी नायडू तमिळ महाकवि सुब्रह्मण्यम् भारती की शैली में तलैपक्कै (पारम्परिक पगड़ी) पहनते थे इसलिए उनका भोजनालय तलपकट्टी नाम से प्रसिद्ध हो गया। असली डिण्डिगल बिरियानी बनाने के लिए उत्कृष्ट घास खाने वाली कन्नीवाडी बकरी का मांस प्रयोग में लिया जाता है।
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पारंपरिक रूप से लम्बे भूरे चावलों से बनाया जाने वाली बिरयानी अब सुगंधित बासमती चावलों से बनाई जाती है। किंंतु दक्षिण भारत में चावल का स्थानीय प्रकार काइमा या जीरकशाल,जिसे तमिळ में सीरग साम्ब या परक्कम सीट्ट् भी कहते हैं, प्रयोग में लिया जाता है जो बिरयानी को अपना विशिष्ट स्वाद और संव्यूति (टेक्सचर) प्रदान करता है। सीरग का अर्थ जीरक या जीरा है और “साम्ब” तमिळ में उस ऋतु को कहते हैं जिसमें यह चावल उगाया जाता है।
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बिरयानी में डलने वाले मसाले हैं पट्टै (दालचीनी), करम्ब या लवंगम (लौंग), एलक्काय (इलायची), जातीपत्री या जातिकै तोल (जावित्री), कलपासी (दगड़ फूल), सोम्ब (सौंफ), अन्नासी पू (चक्रीफूल), ब्रिन्जि इलै (तेज पत्ता), जातिक्कै (जायफल), मराठी मोक्क, शाल्मलि या सेमल, गस गसा (खसखस) आदि।
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बिरयानी नाम से तमिळ में एक प्रहसन (कॉमेडी) और कडैैसील बिरयानी नाम से एक क्रूर प्रहसन (ब्लैक कॉमेडी) चलचित्र बन चुके है।
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बिरयानी के लिए दीवानगी तमिळों के राज्य तक ही सीमित नहीं है अपितु इसका जलवा उनकी राजनीति में भी दिखाई दिया है। द्रविड़ राजनीतिक आंदोलन के एकत्रण (रैली) में भीड़ जुटाने के लिए बिरियानी के प्रलोभन की अपनी भूमिका है। सन् 1991 में मयिलादुतुरै चुनाव क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी मणिशंकर अय्यर थे। उनके प्रतिद्वंदी द्रविड़ मुन्नेट्र कड़गम के प्रत्याशी लोगों को जताने में लगे थे कि मणिशंकर अय्यर एक दमनकारी कर्मकांडी ब्राह्मण हैं। इस पर मणिशंकर अय्यर ने सार्वजनिक तौर पर मांसाहारी बिरयानी खाकर इस धारणा को तोड़ने का प्रयास किया। उनकी यह युक्ति सफल हुई और वह चुनाव जीत भी गए।
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