प्रसिद्ध तमिळ कवि और सिनेगीतकार कण्णदासन् की कालजयी रचनाओं में से एक है चलचित्र कर्णन् का यह गीत। वीर, दानी और कुन्ती का पुत्र होने के बावजूद कर्ण अभागा ही रहा । यह गीत न केवल कर्ण को कृष्ण की श्रद्धांजलि है बल्कि कर्ण से कृष्ण की क्षमायाचना भी है। हिन्दी में मैथिलीशरण गुप्त ने जिस प्रकार अपनी रचनाओं में महान रचनाओं के उपेक्षित पात्रों को स्वर दिया वैसा ही प्रयास इस गीत में भी दिखाई देता है।
.
यह गीत जिस राग में निबद्ध है वह पूरे भारत में लोकप्रिय है। इसे उत्तरभारत में अहीर भैरव और दक्षिण भारत में चक्रवाह के नाम से जाना जाता है। इसे भजन और भक्तिगीतों के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसे संगीतबद्ध किया है विश्वनाथन-राममूर्ति ने और भावप्रवण स्वर दिया है गायक डॉ सीरकाड़ी गोविन्दराजन ने। कर्णन् चलचित्र की विशेषता यह भी थी कि इसमें दक्षिण भारतीय सिनेमा के दो दिग्गज अभिनेता शिवाजी गणेशन और एन टी रामाराव एक साथ दिखाई दिए।
.
कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के बाणों से घायल होकर भी कर्ण के प्राण नहीं जा रहे थे। इसका जो कारण कृष्ण ने अर्जुन को बताया वह था कर्ण का पुण्य जो उसने अपनी अतुल्य दानशीलता से अर्जित किया था। इस समय कृष्ण एक वृद्ध भिक्षुक का रूप धरकर कर्ण के पास जाते हैं और चलचित्र में यह गीत आता है।
.
.
.
उल्लत्तिल नल्ल उल्ल्म
उरंगादेन्बद
वल्लवन वगुत्तादड़ा कर्णा
वरुवदै एदिरकोल्लड़ा
.
तायक्कि नी मगनिल्लै
तम्बिक्कि अन्ननिल्लै
ऊर पड़ि येट्रायड़ा
नानुम उन पड़ि कोण्डेनड़ा
नानुम उन पड़ि कोण्डेनड़ा
.
उल्लत्तिल नल्ल उल्ल्म
उरंगादेन्बद
वल्लवन वगुत्तादड़ा कर्णा
वरुवदै एदिरकोल्लड़ा
.
मन्नवर पणि येरक्कुम
कण्णनुम पणि सेय
उन्नड़ि पणिवानड़ा कर्णा
मन्नित्त अरुलवायड़ा कर्णा
मन्नित्त अरुलवायड़ा
.
सेन्जोट्र कडन तीर्क
सेराद इडम सेरन्द
वंजत्तिल वीड़न्दायड़ा कर्णा
वन्जगन् कण्णनड़ा
कर्णा वन्जगन् कन्ननड़ा
.
उल्लत्तिल नल्ल उल्ल्म
उरंगादेन्बद
वल्लवन वगुत्तादड़ा कर्णा
वरुवदै एदिरकोल्लड़ा
.
हिन्दी अनुवाद
.
हृदयों में सबसे सुन्दर हृदय कभी सोता (मरता) नहीं है
ऐसा बलवान लोग कहते हैं
इसलिए जो हो रहा है उसका सामना करो
.
तुम अपनी माता के पुत्र नहीं हो
न ही तुम अपने भाइयों के अग्रज हो
तुम लोगों द्वारा तिरस्कृत हुए
और मुझे भी तुमसे तिरस्कार मिला
.
जिस कृष्ण ने राजाओं से उनका काम ले लिया
अर्थात उनका राजकाज ले लिया
वह तुम्हारी सेवा में नत होगा
हे कर्ण क्या तुम मुझ पर दया करोगे
.
जिस हाथ ने तुम्हें भोजन कराया
उसकी कृतज्ञता के लिए तुम
जिनके साथ नहीं मिलना था उन (कौरवों) के साथ मिल गए
और कपटियों के बीच फंस गए।
तुम्हें ठगने वाला तो कण्णन (कृष्ण) है।
.
जब यह गीत समाप्त होता है तो वृद्ध भिक्षु रूपी कृष्ण कर्ण के पास जाकर याचना करता है। कर्ण कहता है कि उसके पास देने के लिए कुछ नहीं क्योंकि वह स्वयं अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है किंतु इस समय भी वह अपना जीवन दान कर सकता है। वह कहता है कि यदि भिक्षु उससे उसके द्वारा दी जा सकने वाली कोई वस्तु मांग ले तो वह शांतिपूर्वक प्राण त्याग सकेगा। भिक्षु चतुराईपूर्वक कर्ण से उसका पुण्य मांग लेता है जो उसने अपनी दानशीलता से अर्जित किया है क्योंकि कृष्ण को पता था कि कर्ण के प्राण उसके पुण्य से ही बचे हुए हैं। कर्ण निस्संकोच अपना पुण्य दान कर देता है।
.
उत्तरलिपि: इस गीत में प्रयुक्त तमिळ शब्द “वंजगन्” और “वल्लवन” वास्तव में संस्कृत शब्द “वंचक” और “बलवान” ही हैं।
.
हिन्दी में कोमल झिड़की के अर्थ में जैसे “रे” का प्रयोग होता है जैसे क्या रे, क्यों रे, मत जा रे, आ रे, आ री, वैसे ही तमिळ में “ड़ा” का प्रयोग होता है यथा एन्नड़ा, येन्नड़ा, पोगादड़ा, वाड़ा, वाड़ी इत्यादि। इस गीत में भी एदिरकोल्लड़ा, वगुत्तादड़ा, अरुलवायड़ा, कन्ननड़ा इत्यादि प्रयोग इसी अर्थ में हुए हैं।हिन्दी में खेदजनक अरर…रर..र की तरह तमिळ में भी “अड़ड़ा” का प्रयोग होता है।
.
तमिळनाड जाने पर गैरतमिळ और कुछ सीखें न सीखें “तमिळ तेरियाद” कहना अवश्य सीखते हैं। तेरियाद का अर्थ नहीं आती/आता है अथवा नहीं मालूम है। निषेध के अर्थ में तमिळ में “आद” का प्रयोग होता है जैसे पोगाद (नहीं जाता है या मत जाओ), आगाद (नहीं होता है), कोल्लाद/अडिक्काद (मत मारो), सिरिकाद (मत हंसो), पेसाद (मत बोलो), मरक्काद (मत भूलो), तूंगाद (मत सो), तोड़ाद (मत छुओ), पन्नाद (मत करो), पाकाद (मत मिलो/देखो), निनैक्काद (मत सोचो) । इस गीत में भी उरंगाद (नहीं सोता है), सेराद (मत मिलो) का प्रयोग हुआ है।
0 Comment
Add Comment