वर्ष 2023 की एक भारतीय भाषायी और सिनेमाई उपलब्धि यह रही कि तमिळ वृत्तचित्र “एलिफेन्ट व्हिसपरर्स” ने ऑस्कर पुरस्कार जीता। रूपहले परदे पर संजोयी गयी मनुष्य और हाथी के पारस्परिक स्नेह की यह कानाफूसी तमिळनाड के उदगमण्डलम् या ऊटी में सुनाई देती है जहां का आदिवासी समुदाय काट्टनायकन पीढ़ी दर पीढ़ी हाथियों के लालन पालन और प्रशिक्षण में संलग्न रहा है। काट्टनायकन का शाब्दिक अर्थ है वनाधिपति।
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तमिळों और हाथियों का लगाव सदियों पुराना है। ऐलिफेंन्ट विस्परसर्स इसकी नवीनतम झांकी है। तमिळ शास्त्र तोलकाप्यम् में हाथियों को पालने के विषय में समझाया गया है। हाथी के लिए तमिळ शब्द है यानै जो संस्कृत के यान शब्द का ही इतर रूप जान पड़ता है क्योंकि हाथी यान के रूप में प्रयुक्त होता रहा है। हाथी के लिए दूसरे तमिळ पर्याय हैं तुम्बि,कुम्बि, करिनी, तोल, कण्डाली, सिन्दूरम, दन्तावलम, कलपम, कुंजरम, वारणम, इत्यादि। तमिळ में महावत को पगन कहते हैं। पगन और हाथी के बीच का सम्बन्ध अत्यंत निजी होता है। अत्यंत कुशल पगन अपने हाथी के विरुद्ध कभी अंकुश का प्रयोग नहीं करता है। अंकुश उस अधिकार का प्रतीक मात्र है जिसकी अधीनता को हाथी स्वेच्छा से स्वीकार करता है। युद्ध में महावत के मारे जाने पर भी हाथी उसके शरीर को छोड़कर जाता नहीं था।
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तमिळ राजाओं के पास भिन्न भिन्न आकारों की गज सेना होती थी। चेर राजा के पास हाथियों की विशाल सेना थी। उसे संगम साहित्य में पालानी सेलकेलड़ु कुट्टवन कहकर संबोधित किया गया है। कुट्टवन का अर्थ है बादलों जैसा विशाल। तमिळ साहित्य के 96 प्रकार के लघु प्रबन्धों में से एक “परनी” की रचना विशेष रूप से रणभूमि में सहस्र हाथियों का संहार करने वाले राजा या सेनापति के लिए ही की जाती थी। तमिळ राजा तलैयलंगनाथ सेरूवेन्द्र पांडया नेडुनचेड़ियन के पास कडुमपकट्ट नामक एक निराला हाथी था जो रणक्षेत्र में फुर्तीला था। इसका उल्लेख पुरानानूरू में है।
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भगवान मुरुगन का सर्वविदित वाहन मयूर है किन्तु पवनी के समय वे पिनिमुखम नामक हाथी पर आरूढ़ होते हैं। संगम साहित्य में विनायक पूजा का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसका प्रारंभ पल्लवों के राज्यकाल से ही माना जाता है। तमिळ शास्त्रीय गायकों द्वारा गायी जाने वाली प्रथम रचना वातापि गणपतिम् भजेऽहम् में उल्लिखित वातापि चालुक्यों की राजधानी थी जिसे नरसिंह वर्मन ने आक्रमण करके नष्ट कर दिया था।
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द्रविड़ स्थापत्य में भी हाथी को उल्लेखनीय स्थान मिला है। महाबलीपुरम् में चट्टान पर हाथी की विशाल प्रतिमा विश्वविरासत को पल्लवों का अवदान है। महाबलीपुरम् में ही नकुल सहदेव रथ की छत हाथी के मस्तक जैसी है जिसे गजपृष्ठ विमान कहते हैं। तंजै पेरियकोविल के प्रधान शिल्पी राजराजा पेरून्दअच्चन को कुंजरमल्लन अर्थात् हाथी से कुश्ती करने वाला उपाधि से विभूषित किया गया था। उन्होंने इस भव्य मंदिर के निर्माण के लिए हाथियों को प्रशिक्षित करने में मुख्य भूमिका निभाई थी।
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पश्चिमी घाट की एक प्रसिद्ध पर्वत श्रंखला यानैमलै कहलाती है क्योंकि वह लेटे हुए हाथी जैसी प्रतीत होती है।
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बदलते हुए समय ने पशुओं पर मनुष्यों की निर्भरता को कम कर दिया और वन्यजीवों की तो जैसे जान पर ही बन आई। मनुष्य की भूख हाथी की भूख पर भारी पड़ गयी। मात्र दस वर्ष की आयु में हाथी का अपना पहला शिकार करने वाला तमिळ दस्यु वीरप्पन आजीवन हाथियों के लिए एक खतरा बना रहा।
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कई वर्ष पूर्व तमिळनाड के एक उपद्रवी हाथी ने अपने पुनर्वास के प्रयासों को ठुकराकर अपने मूल आवास की ओर बार बार लौटने की जिद से खूब सुर्खियां बटोरी। उसे नाम दिया गया चिन्ना तम्बी (छोटा भाई)। पशुप्रेमियों ने भी उसका समर्थन किया। हालांकि मनुष्य की जिद के सामने उस उस हठीले हाथी ने घुटने टेक दिए। अब चिन्ना तम्बी एक कुम्कि के रूप में अपनी सेवाएं दे रहा है। कुम्कि वह प्रशिक्षित हाथी होता है जो दूसरे वन्य हाथियों को नियन्त्रित करने में महावतों का साथ देता है। एक कार्य के माध्यम से दूसरे कार्य की सिद्धि के लिए तिरुकुरल में भी कुम्कि का ही उदाहरण दिया गया है।
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विनैयान विनैयाक्किक् कोडल ननैकवुल
यानैयाल यानैयाद तट्र (कुरल 678 /अधिकारम)
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2019 के बजट सत्र में तत्कालीन वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रसिद्ध तमिळ कवि पिसरान्दियार की कविता यानै पूक्क पूलम के इस पद को उद्धृत किया:
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काय नेल अरत्त कवलम् कोलिने
अरिवुडै वेन्दन नेरि अरिन्द कोलिने
परिवु तपा एडुक्कुम पिण्डम् नच्चिन
यानै पूक्क पुलम् पोल
तानुम उन्नान उलगुमुम केडुमे
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इस पद में कृषकों को धान की अल्प मात्रा से बने पिण्डों को हाथी को खिलाने का सुझाव दिया गया है ताकि वे अपने भोजन की खोज में सारी फसल को नष्ट न करें। निर्मलाजी ने करी (हाथी) में कर में को देखते हुए भारतीय कर व्यवस्था को बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव से समझाने का प्रयास किया जो काफी चर्चा में रहा।
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हाथियों के प्राकृतिक परिवेश को सहेजने के लिए तमिळनाड में चार अभयारण्य हैं, नीलगिरी उत्तरी घाट, नीलाम्बूर साइलेंट वैली, श्रीविल्लीपुत्तूर और अन्नामलै । अगस्त्यमलै में एक नए अभयारण्य को स्थापित करने की घोषणा हाल में हुई है।
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