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गोलू शब्द सुनकर किसी उत्तर भारतीय के मन में किसी प्यारे से गोल मटोल बच्चे की छवि उभरती है, गोलू कई बच्चों को प्यार से बुलाया भी जाता है, किंतु दक्षिण भारत में गोलू या कोलू मिट्टी या लकड़ी से बने उन खिलौनों को कहते हैं जिनसे नवरात्र पर वे अपने घर को सजाते हैं।
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गोलू शब्द की व्युत्पत्ति तमिळ शब्द कोलू से हुई है जिसका अर्थ होता है व्यवस्था। रंग बिरंगे गोलुओं को गोपुरम के आकार में एक सोपान संरचना पर सजाया जाता है जिसे गोलू पाड़ी कहते हैं। गोलू पाड़ी में सबसे ऊपर एक कलश रखा जाता है। सभी गोलू प्रदर्शनियों में लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा अनिवार्य रूप से विद्यमान रहती हैं। गृहस्वामी दम्पति के प्रतीक रूप में लाल चंदन से निर्मित मारापची गुड़ियायें भी होती हैं। इसके अतिरिक्त उरुट्ट बोम्मै अर्थात् राजा रानी, तलै आटि बोम्मै अर्थात् सिर हिलाकर नाचने वाली गुड़िया, कच्छी घोड़ी की तर्ज पर बनी पोइक्कल कुदिरै, व्यापारी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली चेट्टियार आची गुड़ियायें भी होती हैं। घर के बच्चे भी अपने खिलौने गोलू पाड़ी पर सजाते हैं।
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